Puraanic contexts of words like Mathana, Mathuraa, Mada, Madana etc. are given here.
मत्स्योदरी नारद २.४८.२३(मत्स्योदरी नाडी सुषुम्ना नाडी का रूप), स्कन्द ४.१.३३.१२०(काशी में मत्स्योदरी तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : माता के गर्भ में वास से मुक्ति), ४.२.६९.१३६(मत्स्योदरी तीर्थ का माहात्म्य : संसार के आवागमन से मुक्ति), ४.२.७३.१५६(मत्स्योदरी तट पर ओङ्कार व नादेश्वर लिङ्ग की स्थिति व माहात्म्य), ४.२.९७.७९(मत्स्योदरी गङ्गा का संक्षिप्त माहात्म्य, मत्स्योदरी नाम का कारण), ४.२.९७.११२(श्री परिवर्धन हेतु मत्स्योदरी तट पर सत्यवतीश्वर लिङ्ग की पूजा का उल्लेख ) matsyodaree/ matsyodari
मथन ब्रह्माण्ड २.३.७.१७९(मथित : श्वेता व पुलह के १० वानर पुत्रों में से एक), ३.४.८.२४(प्राणियों की ४ मूल वासनाओं में से एक), ३.४.८.२९(२५/५भ्५ तत्त्वों के मन्थन सम्बन्धी कथन), मत्स्य १४८.५४(मथन दैत्य के रथ का प्रकार), १५२(तारक – सेनानी, विष्णु से युद्ध व पराजय), १९५.३६(मथित : भार्गव वंश के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वायु २९.८(अथर्वा अग्नि द्वारा पुष्कर उदधि में अमृत मन्थन का उल्लेख), स्कन्द १.२.१६.२०(तारकासुर के १० नायकों में से एक, ध्वज पर राक्षसी चिह्न होने का उल्लेख ), द्र. निर्मथ्य, प्रमथ mathana
मथुरा गरुड २.६.१४१(मथुरा में वृषोत्सर्ग का उल्लेख), गर्ग २.१(मथुरा मण्डल की प्रयाग से श्रेष्ठता का वर्णन), ३.९.१८(कृष्ण की जत्रु/गले की हंसली से मथुरा का प्राकट्य), ५.२५(मथुरा का माहात्म्य), नारद २.७९(मथुरा के अन्तर्वर्ती विभिन्न तीर्थों का माहात्म्य, १२ वनों का माहात्म्य), पद्म ५.६९.१४(सहस्रदल कमल का रूप), ५.७३.२६(मथुरा की महिमा का वर्णन), ब्रह्माण्ड २.३.६३.१८६(शत्रुघ्न द्वारा लवण का वध करके बसाई गई मथुरा पुरी में शत्रुघ्न – पुत्र शूरसेन के राज्य का कथन), भागवत ९.११.१४(शत्रुघ्न द्वारा मधु – पुत्र लवण का वध कर मधुवन में मथुरापुरी निर्माण का कथन), १०.१.२७(मथुरा के यादवों की राजधानी बनने का कथन, मथुरा में कंस द्वारा देवकी के वध के प्रयास का वृत्तान्त), १०.४१(कृष्ण द्वारा मथुरा के वैभव का दर्शन), १०.५०(जरासन्ध द्वारा मथुरा पर चढाई, कृष्ण द्वारा बार – बार परास्त करना, कालयवन द्वारा मथुरा को घेर लेने पर कृष्ण द्वारा द्वारका के निर्माण का निश्चय), १०.७९.१५(बलराम द्वारा दक्षिण मथुरा तीर्थ की यात्रा करने का उल्लेख), वराह १५२(मथुरा तीर्थ का माहात्म्य), १५३+ (मथुरा के अन्तर्गत वन, यक्ष्मधनु – पीवरी की कथा), १५८+ (मथुरा के अन्तर्गत तीर्थ, मथुरा की प्रदक्षिणा), १६३.१५(मथुरा रूपी पद्म के चार पत्रों पर स्थित विष्णु के रूप), १६५(मथुरा में चतु:सामुद्रिक कूप पर पिण्ड दान से प्रेत की मुक्ति की कथा), १६८(मथुरा का माहात्म्य, शिव का क्षेत्रपालत्व), १६९(गरुड द्वारा सभी मथुरावासियों में कृष्ण रूप के दर्शन), वायु ८८.१८५/२.२६.१८५(शत्रुघ्न द्वारा बसाई गई मथुरा पुरी में शत्रुघ्न – पुत्र शूरसेन के राज्य का कथन), ९९.३८३/२.३७.३७७(भविष्य के ७ नाग राजाओं द्वारा मथुरा पुरी के भोग का उल्लेख), १०४.८०/२.४२.८०(मथुरा पीठ की कण्ठ में स्थिति का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.२४७.६(शत्रुघ्न का मधुवन में प्रवेश, लवण का वध तथा मथुरा की स्थापना का वृत्तान्त), ३.१२१.५(मथुरा में शत्रुघ्न की पूजा का निर्देश), स्कन्द २.५.१७(मथुरा का माहात्म्य), २.६.१(मथुरा में वज्रनाभ के राज्य का कथन), ४.१.७.१(मथुरा वासी देवसत्तम – पुत्र शिवशर्मा का वर्णन), ५.३.१९८.७६(मथुरा में देवी के देवकी नाम स्मरण का निर्देश), हरिवंश १.५४.५६(शत्रुघ्न द्वारा मधुवन के स्थान पर मथुरा पुरी के निर्माण का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.३४३(प्रथम द्वापर में मथुरा के विभिन्न तीर्थ स्थलों के नाम तथा उनके माहात्म्य आदि का कथन), १.३४४(निषाद के मथुरा में मरण से सौराष्ट} – अधिपति बनने का वृत्तान्त, मथुरा के १२ वनों के नाम आदि), १.३४५(मथुरा में विभिन्न तीर्थों का माहात्म्य, सुधन तीर्थ के संदर्भ में सुधन भक्त द्वारा नृत्य के पुण्यदान से ब्रह्मराक्षस की मुक्ति का वृत्तान्त), १.३४६(मथुरा के विभिन्न क्षेत्रों, कुण्डों आदि के महत्त्व, मथुरा प्रदक्षिणा की विधि), १.३४७(मथुरा में चक्र तीर्थ में स्नानादि से सिद्ध की ब्रह्महत्या दोष के निवारण का वृत्तान्त, मथुरा रूपी पद्म के विभिन्न दलों में कृष्ण के नाम, दक्षिण दल में वराह नाम के संदर्भ में कपिल – प्रदत्त वाराही प्रतिमा की मथुरा में प्रतिष्ठा का वृत्तान्त), १.३४८(मथुरा में गोवर्धन कूट व अन्नकूट के माहात्म्य के संदर्भ में चतु:सामुद्रिक कूप पर पिण्ड दान से प्रेत के उद्धार की कथा, मथुरा में वराह विष्णु द्वारा दुष्ट राजा विमति के सूदन का वृत्तान्त), १.३४८.५८(सुशील वैश्य के प्रेत के उद्धार हेतु विभ्व वैश्य द्वारा मथुरा में पिण्डदान), १.३४९(मथुरा में विश्रान्ति तीर्थ के माहात्म्य के संदर्भ में विप्र द्वारा विश्रान्ति तीर्थ में स्नान के फल दान से प्रेत की मुक्ति का वृत्तान्त, शम्भु की क्षेत्रपाल रूप में मथुरा में स्थिति, कृष्ण के अंश पत्नीव्रत विप्र द्वारा मथुरा के जल से डाकिनी आदि के प्रोक्षण का वृत्तान्त), १.३५०(मथुरा में गोकर्णेश्वर तीर्थ के माहात्म्य के संदर्भ में पुत्रहीन विप्र द्वारा स्वदेश सौराष्ट} में गोकर्णेश्वर शिव की स्थापना तथा कच्छ क्षेत्र में वनदेवियों की प्रतिष्ठा), १.३५१(विप्र द्वारा मथुरा यात्रा व मथुरा में याग, शुक का मोक्ष, विप्र द्वारा मथुरा – सरस्वती संगम में स्नान आदि के पुण्य दान से ५ प्रेतों की मुक्ति का वृत्तान्त), १.३५२(भगिनी व भ्राता के अगम्यागमन पाप से मुक्ति के संदर्भ में मथुरा में पञ्चतीर्थ तथा त्रिगर्तेश में स्नान का माहात्म्य), १.३५३(कुष्ठ से मुक्ति हेतु साम्ब द्वारा मथुरा में षडादित्यों की स्थापना का वृत्तान्त), १.३५४(मथुरा में ध्रुव तीर्थ के माहात्म्य के संदर्भ में मथुरा के राजा चन्द्रसेन की दासी द्वारा ध्रुव तीर्थ में श्राद्धादि करने से जन्तु रूप पितर की मुक्ति का वृत्तान्त), कथासरित् २.४.७८(मथुरा नगरी में ब्राह्मण लोहजङ्घ की कथा), ३.१.८४(रत्नपूर्णा मथुरा नगरी के यइल्लक वैश्य – पुत्र व उसकी पत्नी द्वारा परस्पर विरह से प्राण त्याग की कथा), ६.८.६८(यक्ष द्वारा मथुरा नगरी के बाहर स्थित खजाने की रक्षा करना ), गोपालोत्तरतापिन्युपनिषद १७(ब्रह्मज्ञान से जगत को मथने पर उत्पन्न सार), द्र. मधुरा mathuraa
मद गणेश २.२७.८(मदनावती का राजा पति के साथ सती होना), गरुड १.१५५(मदात्यय रोग निदान), देवीभागवत ७.७.१४(च्यवन द्वारा यज्ञ में इन्द्र के निग्रहार्थ मद की उत्पत्ति, मद के वास स्थानों का निर्धारण), नारद १.६६.१३०(आमोद गणेश की शक्ति मदजिह्वा का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.५९.९ (कलि – पुत्र), ३.४.४४.७३(मदजिह्वा : ४८ वर्ण शक्तियों में से एक), भविष्य ३.३.२८.६२(शोभा वेश्या द्वारा महामद पिशाच की आराधना व सहायता प्राप्ति का वर्णन), भागवत ४.४.४(सती द्वारा पिता दक्ष के घर जाते समय सती के साथ जाने वाले शिव गणों में से एक), १०.१०.८, मत्स्य ३.११(ब्रह्मा के अहंकार से मद की उत्पत्ति का उल्लेख), १७९.२२(मदोद्धता : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), १९६.२६(मादि : अङ्गिरस वंश के ऋषियों में से एक), वराह २७.३६(ब्रह्माणी मातृका का रूप), वायु ८४.९/२.२२.९(कलि – पुत्र), विष्णुधर्मोत्तर ३.२४४(मद के दोषों का कथन), स्कन्द १.३.१.१३.२२(मृगमद की पुलक दैत्य की देह से प्राप्ति, शिव द्वारा पार्वती के अङ्गों पर मृगमद का लेपन), ७.१.२८२+ (च्यवन द्वारा अश्विनौ को सोमपान कराने पर इन्द्र का हस्तक्षेप, च्यवन द्वारा मद नामक असुर की उत्पत्ति, शक्र के अनुरोध पर मद का पान, स्त्रियों आदि में विभाजन), महाभारत उद्योग ४३.२६(मद के १८ दोषों के नाम), ४५.९(मद के १८ दोषों के नाम), लक्ष्मीनारायण २.५७.४०(मर्क व मदानक असुरों का यमदूत शृङ्गवान् से युद्ध, यमदूत द्वारा हस्त – पादों का कर्तन), २.१०९.४(रणमदाङ्कन : कालप्रालेयों का राजा, मखान्त में श्रीहरि से युद्ध करने वाले असुरों में से एक ), द्र. उन्मादिनी, गृत्समद, दुर्मद, नर्मदा, प्रमदा, भद्रमदा, मन्द, महामद, सुमद mada
मदन अग्नि १९१.८(मदनाशी द्वारा कार्तिक में विश्वेश्वर की पूजा का निर्देश), गणेश २.११४.१४(सिन्धु व गणेश के युद्ध में मदनकान्त का वीरभद्र से युद्ध), नारद १.१२१.२(चैत्र शुक्ल द्वादशी को मदन द्वादशी व्रत विधि), ब्रह्माण्ड ३.४.८.२४(४ वासनाओं के मूल के रूप में मदन का कथन?), ३.४.२१.७८(भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में से एक), ३.४.२५.९४(ललिता – सहायक कामेशी देवी द्वारा मदन दैत्य के वध का उल्लेख), ३.४.३६.७६(मदना व मदनातुरा : ललिता की सहायक ८ शक्तियों में से २), भविष्य ३.३.२६.८७(सरदन द्वारा उत्तर के अंश मदन का वध), ३.४.२२.२६(मुकुन्द – शिष्य, जन्मान्तर में चन्दल नर्तक बनने का कथन), ४.८६(मदन द्वादशी व्रत का वर्णन : दिति से मरुतों का जन्म), मत्स्य ७.७(मदन द्वादशी व्रत की विधि), ४६.१९(देवकी के ७वें पुत्र के रूप में मदन का उल्लेख), मार्कण्डेय २.१६(मदनिका : मेनका – पुत्री, विद्युद्रूप राक्षस की भार्या, राक्षस की मृत्यु पर कन्धर पक्षी की भार्या बन कर पक्षी रूप धारण करना, कन्धर व मदनिका से तार्क्षी का जन्म), वायु ६९.४८/२.८.४८(मदनप्रिया : अरिष्टा व कश्यप की ८ अप्सरा पुत्रियों में से एक), स्कन्द ५.३.३८.१७(पार्वती के आग्रह पर शिव द्वारा मदन रूप धारण कर महादारुवन की स्त्रियों के चरित्र में क्षोभ उत्पन्न करने तथा शिव के लिङ्ग पतन का वृत्तान्त), ६.२५२.३४(चातुर्मास में अश्विनौ द्वारा मदन वृक्ष के वरण का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८८(नारायण ह्रद में वृक्ष रूपी कृष्ण के दर्शन हेतु अश्विनीकुमारों का मदन वृक्ष होना), कथासरित् ७.८.१३८(मदनदंष्ट्रा : राक्षस द्वारा राजा वीरभुज को खाने व उसकी पत्नी मदनदंष्ट्रा को स्वयं की पत्नी बनाने का उल्लेख), ९.२.६९(मदनपुर के विद्याधर प्रलम्बभुज द्वारा पुत्र स्थूलभुज को शाप देने की कथा), ९.२.४०५(पिता द्वारा शापित अनङ्गप्रभा को पत्नी बनाने हेतु विद्याधर मदनप्रभ के प्रयास की कथा ) madana
मदनक ब्रह्माण्ड ३.४.२५.२७(भण्डासुर के १५ सेनापतियों में से एक), ३.४.२५.९४(ललिता – सहायक कामेशी देवी द्वारा मदन दैत्य के वध का उल्लेख ) madanaka
मदनमञ्चुका कथासरित् ६.८.९५(मदनवेग विद्याधर की पुत्री मदनमञ्चुका के बाल्यकाल का वर्णन), ६.८.२१७(कलिङ्गसेना की पुत्री मदनमञ्चुका के रूप में अवतरित रति का नरवाहनदत्त रूप में अवतरित कामदेव से विवाह), १२.३६.२४३ (मुनि पिशङ्गजट द्वारा नरवाहनदत्त के समक्ष नष्ट मदनमञ्चुका की पुन: प्राप्ति की भविष्यवाणी), १४.१.६(नरवाहनदत्त का मदनमञ्चुका के विरह में व्याकुल होना, नरवाहनदत्त का मदनमञ्चुका का रूप धारण करने वाली वेगवती विद्याधरी से विवाह, वेगवती द्वारा नरवाहनदत्त को मदनमञ्चुका से मिलाने का उद्योग), १४.२.७६(प्रभावती द्वारा नरवाहनदत्त का मानसवेग विद्याधर द्वारा बद्ध मदनमञ्चुका से मिलन कराना), १५.२.७०(मदनमञ्चुका के रति का अवतार होने का उल्लेख ) madanamanchukaa
मदनमञ्जरी भविष्य ३.२.४.१७(चन्द्रवती की सखी मेना पक्षी मदनमञ्जरी द्वारा शुक से विवाह की अस्वीकृति), ३.३.२०.२५(राजा लहर व रावी – पुत्री मदनमञ्जरी की उत्पत्ति व वरुण के अंश सुखखानि से विवाह का कथन), स्कन्द ५.२.६१.३(काशिराज – सुता व अश्ववाहन – पत्नी मदनमञ्जरी द्वारा पति प्रेम की प्राप्ति के लिए सौभाग्येश्वर लिङ्ग की पूजा ) madanamanjaree/ madanamanjari
मदनलेखा कथासरित् ५.२.१६२(राजा द्वारा स्वपुत्री मदनलेखा का विवाह अशोकदत्त से करना), १८.२.२६६(सिंहलाधीश के दूत अनङ्गदेव द्वारा सिंहलाधीश की कन्या मदनलेखा आदि को विक्रमादित्य को भेंट करना, विक्रमादित्य का मदनलेखा से विवाह ) madanalekhaa
मदनवेग कथासरित् ६.७.१६७(मदनवेग विद्याधर द्वारा वत्सेश का रूप धारण कर कलिङ्गसेना से गान्धर्व विवाह करना, वास्तविक वत्सेश के आगमन पर मदनवेग का अदृश्य होना आदि), १२.२०.७(मदनवेग विद्याधर द्वारा हरिस्वामी द्विज की भार्या लावण्यवती का अपहरण), १६.२.८(मदनवेग व कलिङ्गसेना – पुत्र इत्यक द्वारा सुरतमञ्जरी के हरण का प्रसंग, मदनवेग – पुत्र इत्यक का संदर्भ ) madanavega
मदनसुन्दरी कथासरित् ९.५.५७(देवशक्ति व अनन्तवती की पुत्री मदनसुन्दरी के राजा कनकवर्ष की भार्या बनने का वृत्तान्त, राजा द्वारा मदनसुन्दरी से पुत्र प्राप्त करने का वृत्तान्त, पुत्र व स्त्री से राजा के वियोग व पुन: मिलन का वृत्तान्त), १२.१३.८(शुद्धपट रजक – पुत्री व धवल – भार्या मदनसुन्दरी द्वारा भ्राता व पति के कटे हुए सिरों को भूल से एक दूसरे के कबन्धों से जोड देने का वृत्तान्त), १८.४.७४(एकाकिकेसरी भिल्लराज द्वारा स्वकन्या मदनसुन्दरी को राजा विक्रमादित्य को अर्पित करना ) madanasundaree/ madanasundari